कितने रिश्ते नए पुराने
कितने रिश्ते जाने पहचाने
आवाज़ देते हैं मुझे
जैसे की मुझसे कह रहे हों
की कभी दूर ना जाना
अँधेरे की खामोशियों में गुम न हों जाना
कभी दूर ना जाना
कितने रिश्ते जाने पहचाने
आवाज़ देते हैं मुझे
जैसे की मुझसे कह रहे हों
की कभी दूर ना जाना
अँधेरे की खामोशियों में गुम न हों जाना
कभी दूर ना जाना
Grishma, dost, Im telling you do write frequently.
ReplyDeleteYour poems are amazing :)
Do participate in some online competitions :)