बातों का पिटारा
अक्सर सोचती हूँ
क्या होता अगर बातें
नहीं होती
फीलिंग्स को बयान करने की
खवाइश नहीं होती
वो सहेलियों के साथ
हसना , खिलखिलाना
और कभी ईमोशंन मैं
सेंटी हों जाना
तो कभी दोस्तों के साथ
देर रात तक जिन्दगी
के नोट्स को समझना
और समझाना
कभी उनके साथ लाइफ
की गहराईयों
मैं दुबकी मारना
और कभी फॅमिली के
साथ हसना खेलना मुस्कुराना ...
क्या होता अगर यह बातें नहीं होती
क्या होता अगर मेरी जिंदगी
मेरी अपनी नहीं होती ...
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